रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- ऐसी नकारात्मक सोच का क्या फायदा जो कभी कुछ सकारात्मक होने ही ना दे आग लगे ऐसी नकारात्मक सोच को. पानी भी नसीब ना हो आग बुझाने को. अपना तो कबाड़ा करती ही है साथ वालों की भी चटनी बना देती है. कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो. अब देखो रॉकेट गोली एक तरफ और दूसरी तरफ सिर्फ पत्थर. भला पत्थर से भी कभी छेद हुआ है क्या. रॉकेट गोली के सामने पत्थर की क्या बिसात. फिर भी कश्मीर के भटके हुए युवाओं का हथियार बना पत्थर, मंदिर में भगवान मानकर पूजा जाता है पत्थर. और रास्ते का पत्थर किस्मत ने मुझे बना दिया, जो गुजरा एक ठोकर मार कर निकल गया. अब जब किस्मत ने पत्थर बना ही दिया है तो फिर मील का पत्थर ही क्यों ना बन जाएं. अहिल्या के पत्थर बनने से लेकर धरती के स्वर्ग में पत्थरों की बरसात तक के दौर में बस पत्थर ही पत्थर. हर किसी की ख्वाहिश होती है जिंदगी चाहे जैसी गुजरे, पर वो एक मील का पत्थर स्थापित करे. पत्थरों पर नाम खुदवा- खुदवा कर ना जाने अब तक इतिहास की कितनी गाथाएं लिखी जा चुकी है. भले पत्थर की कोई औकात ना हो लेकिन ऐतिहासिक घटनाएं या सुनहरे भविष्य की योजनाएं पत्थरों पर उकेरी जाती है.
विज्ञान और धर्म में लंबे समय से द्वंद्व चला आ रहा है. पर केदार घाटी में आपदा के बाद इस द्वंद्व में धर्म की ही विजय दिखाई दे रही है. कहानी बाबा केदार की रक्षा को लेकर है. एक भीमकाय पत्थर कैसे इतनी ऊंचाई से मंदिर के पीछे आकर ठहर गया इस पर विज्ञान फिलहाल कुछ कहने की स्थिति में नहीं है. पर धर्म ने एक ऐसी कहानी रच दी है जो इस इक्कीसवीं सदी में सर्वमान्य होकर स्वीकार कर ली गई है. तभी तो कहते हैं यह भारत है, जहां इंसान तो इंसान, पत्थर भी पूजे जाते हैं. केदार मंदिर के ठीक पीछे दीवार की तरह खड़ी इस शिला का वजन कई टन होने का अनुमान लगाया गया है. लंबाई आठ बाई चार है. पत्थरों की बरसात के बीच केदारनाथ मंदिर की पश्चिम दिशा के ठीक 10 मीटर पीछे आकर यह ठहर जाता है. इस भारी बोल्डर से टकराने के बादही मंदाकिनी, केदारद्वारी व सरस्वती नदी के रौद्र पर काफी हद तक ब्रेक लग सका. तीनों नदियां अपना रास्ता बदलने को मजबूर हो गईं तो कई बड़े पत्थर इस शिला से टकराकर चूर-चूर हो गए थे.धार्मिक दृष्टि से इस शिला की कहानी खोज ली गई है.तभी तो यह शिला अब दिव्य शिला बन चुकी है. इसका नाम दिव्य भीम शिला रखा गया है. बाबा केदार के दर्शनों के बाद इसी दिव्य शिला के आगे बाबा के भक्त नतमस्तक हो जाते हैं।