रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल-(उत्तराखंड)- प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश हल्द्वानी जिला नैनीताल की अदालत में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हल्द्वानी द्वारा आरोप विचरण आदेश के विरुद्ध आपराधिक मामले की निगरानी की सुनवाई हुई जिसमें पत्नी द्वारा अपने पति के विरुद्ध हल्द्वानी थाने में धारा 377, 498-ए आईपीसी तथा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम व अन्य ससुराल पक्ष के लोगों के विरुद्ध अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया था। जिसको पति द्वारा फौजदारी निगरानी के माध्यम से चुनौती देते हुए कहा गया कि पति-पत्नी के बीच धारा 377 आईपीसी का अपराध नहीं बनता है। जिसमें उसके अधिवक्ता पंकज कुलौरा द्वारा विभिन्न उच्च न्यायालयों के प्रमुख आदेशों की व्याख्या करते हुए बताया कि माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा संजीव गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2023 एएचसी 231653 तथा माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा उमंग सिंघर बनाम मध्य प्रदेश राज्य एम.सीआर.सी न०596000 सन 2020 निर्णय तिथि 21.9.2023 का हवाला देकर नजीर के तौर पर प्रस्तुत किया कि इन मामलों में माननीय उच्च न्यायालयों द्वारा पति-पत्नी के संबंधों में धारा 377 आईपीसी का अपराध होना नहीं कहा जा सकता है तथा पति-पत्नी के संबंधों में बलात्कार जैसा कोई अपराध नहीं हो सकता है। इसके साथ ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ 2008 (10)एचसीसी पेज1 में यह भी स्पष्ट कर दिया है की दो वयस्क व्यक्तियों में सहमति के आधार पर यदि अप्राकृतिक संबंध बने हैं तो उस परिस्थिति में धारा 377 आईपीसी का अपराध नहीं बन सकता है। इलाहाबाद एवं मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों के प्रमुख आदेशों को नजीर मानते हुए न्यायालय द्वारा पति के विरुद्ध धारा 377 आईपीसी के आरोप को निरस्त कर दिया गया तथा धारा 498 ए आईपीसी तथा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम के आरोप को बरकरार रखकर विचारण न्यायालय को पत्रावली भेज दी गई।