दया के दिल की आवाज:- *कागज  का  घर*

दया के दिल की आवाज:- *कागज का घर*

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल:-
मैं काग़ज़ का एक घर चाहती हूं,
जहाँ ख्वाबों की ही छत सर चाहती हूं।
न दीवार हो, न कोई दरवाज़ा,
बस थोड़ी सी खुली नज़र चाहती हूं।
जहाँ आँधियाँ भी पढ़ें नाम मेरा,
मैं ऐसी कोई भी सहर चाहती हूं।
रहे सादगी, रंग हो कल्पना में,
न हो ताम-झाम, हुनर चाहती हूं।
जहाँ रिश्ते हों गोंद की तरह से नहीं,
मैं भावों की नर्म डगर चाहती हूं।
न सवालों का शोर हो उस जगह,
बस चुप्पी से इक हमसफ़र चाहती हूं।
“दया” की है ये दिल की आवाज़ सुनो,
मैं खुद से जड़ा एक घर चाहती हूं।
लेखक:- दया भट्ट खटीमा उत्तराखंड

Uttarakhand