महिला आरक्षण – सत्ता के पीछे का सच

महिला आरक्षण – सत्ता के पीछे का सच

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 पर आधारित-
वह चुनी गई —
नाम उसका,
चेहरा उसका,
पर निर्णय…
अब भी वही पुराना!

वह बैठती है पंचायत की कुर्सी पर,
पर बोलता है कोई और।
हस्ताक्षर उसके,
पर इशारे किसी और की उँगलियों से तय होते हैं।

गाँव की गलियों में यह कैसी गूँज है —
“आरक्षण से क्या होगा,
वो तो घर की औरत है!”

औरत?
हाँ, वही औरत
जो खेत में भी पसीना बहाती है,
और चूल्हे पर भी —
जिसकी आँखों में स्कूल नहीं,
सिर्फ़ सरपंच बनने का सपना रखा गया —
किसी और के स्वार्थ से भरकर।

वो पढ़ी नहीं,
पर अब वह पंच बन गई —
बिना समझे प्रस्ताव,
बिना बोले अपनी बात।
क्या यह सशक्तिकरण है
या बस सत्ता की एक और छाया?

पुरुष खड़े हैं पीछे —
छाया की तरह नहीं,
छत्र की तरह!
औरतों को आगे किया है,
पर पीछे से पकड़े हैं डोरियाँ।

यह कैसी राजनीति है?
जहाँ आरक्षण दिया गया —
पर अधिकार नहीं।
जहाँ माइक थमाया गया —
पर स्वर अब भी पराया है।

क्या यही है पंचायती राज?
या
“पर्दे में मुखिया”
“और मंच पर निर्देशक”?

पर ये चुप्पी टूटेगी…
एक दिन —
जब वो पढ़ेगी, समझेगी,
और बोलेगी।
तब आरक्षण नहीं,
प्रतिनिधित्व होगा —
वास्तविक, निर्भीक और स्वतंत्र।
लेखक:- दया भट्ट खटीमा उत्तराखंड

Uttarakhand