वैदिक संस्कृति बनाम एक दिन का गुलाब- दया भट्ट

वैदिक संस्कृति बनाम एक दिन का गुलाब- दया भट्ट

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल:-
मेरी वैदिक संस्कृति भी
कितनी प्यारी थी,
खेत खलिहान थे
सदाबहार बाग और फ़ुलवारी थी,
आज एक दिन का गुलाब है ll

अहिंसा थी आजादी थी
खुशीयों के मंजर भी थे
बंदगी होती थी इंसानियत की
भाईचारा कायम था
अब तो सिर्फ़ रूआब है ll

आज पाश्चात्य मंतव्य को
कर रहे हैं साकार
अपनी ही संस्कृति को रौंद कर
जो दे रहे हैं प्यार का नाम
वह सिर्फ़ एक ख्वाब है ll

धर्म को अधर्म करके
वेद पुराण के मंतर बदल डाले
क्षणिक सुख की लालसाओं को
जीवन पथ से ही भटक गए
ओह्ह! यह कैसा शबाब है ll

आलेख- दया भट्ट खटीमा उत्तराखंड

उत्तराखंड