रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- हमारे देश भारत वर्ष के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण जी के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।आज के दिन गुरुजनों का आदर सम्मान कुछ विशेष रूप से किया जाता है प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह आज के दिन अपने गुरुजनों का सम्मान कुछ विशेष तरीके से करें उन्हें बधाई संदेश भेजकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं यह केवल विद्यार्थी वर्ग नहीं अपितु प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य है।
बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त होना असंभव है हमारे हिंदू धर्म में अनेक कवियों ने भी गुरु की महिमा गाई है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।।
कबीर दास जी ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि यदि गुरु और भगवान एक साथ खड़े हो तो सर्वप्रथम कौन पूजनीय है? क्योंकि गुरु ने भगवान तक पहुंचने का मार्गदर्शन किया है अतः गुरु भगवान से भी बढ़कर हैं। यहां तक कि कवि ने कहा है कि-
सब धरती कागज करूं लेखनी सब वनराई।
सात समुद्र की मसि करूं गुरु गुण लिखा न जाए।।
अर्थात सारी पृथ्वी के बराबर कागज हो तथा सारी धरती में जितने भी पेड़ हैं उन सब की यदि लेखनी अर्थात कलम बनाई जाए और सात समुद्रों की स्याही बनाई जाए इसके बावजूद भी गुरु की महिमा को गाना कम पड़ता है।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वर: गुरु साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति, पूजा मूलं गुरु पदम ।
मंत्र मूलं गुरुर वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरुर कृपा ।।
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा गुरु ही विष्णु गुरु ही शिव है गुरु ही साक्षात परब्रह्म है उन सद्गुरु को प्रणाम है। ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति पूजा का मूल गुरु के चरण मंत्र का मूल गुरु का वाक्य और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है।
गुरु की कृपा एवं गुरु का मार्गदर्शन व्यक्ति को अंत तक चाहिए होती है। व्यक्ति चाहे गुरु से अधिक ज्ञान अर्जित कर ले इसके बावजूद भी उसे गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता पढ़ती है। उदाहरणार्थ कोई व्यक्तिगुरु की पोस्ट से आगे बढ़ जाता है अर्थातवह अपने शिक्षक से बड़ा अधिकारी बन जाता है इसके बावजूद भी उसे अपने प्राथमिक शिक्षक का आदर सम्मान विधिपूर्वक करना चाहिए उसे फिर भी अपने गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। इससे संबंधित एक प्रेरक कथा कुछ इस प्रकार से है कि एक देश में एक बहुत बड़ा चित्रकार रहता था उसकी प्रसिद्धि एवं उसकी ख्याती संपूर्ण देश में फैल गई थी। वह किसी भी व्यक्ति का हुबहू चित्र मात्र एक बार देखने से बना देता था। उसकी प्रसिद्धि वहां के राजा के महल में भी पहुंच गई थी।अतः एक दिन राजा ने उसे अपने पास महल में बुलाया राजा ने कहा तुम बहुत बड़े चित्रकार हो किसी भी व्यक्ति का हूबहू चित्र बना लेते हो ऐसा सुनने में आया है। तुमने मुझे देख लिया है अब घर जाकर मेरा हूबहू चित्र बनाकर कल लाना यदि चित्र ने हमें प्रभावित कर दिया तो हम तुम्हें उचित पुरस्कार देंगे अन्यथा हम तुम्हारा सर कलम कर देंगे। वह राजा एक आंख का काणा था ।घर जाकर वह व्यक्ति धर्म संकट में पड़ गया अब वह राजा का चित्र किस तरह बनाएं। यदि वह राजा के चित्र में दोनों आंखें सही बनाए तो चित्र गलत साबित हो जाएगा यदि एक आंख का काणा बनाए तो भी राजा का अपमान होगा इसमें भी राजा उसे दंड देंगे। बहुत सोच-विचार के बाद आधी रात को वह अपने गुरु के पास गया जहां से उसने चित्रकारी की शिक्षा ग्रहण की थी ।उसने गुरु को प्रणाम करते हुए रात्रि को आने के लिए क्षमा मांगी। गुरु ने कहा कैसे आना हुआ? उसने कथा बताते हुए कहा गुरु जी मैं धर्म संकट में पड़ गया हूं आप ही मेरा मार्गदर्शन करें। गुरु ने उसकी पूरी बात सुनते हुए कहा घबराओ मत तुम तो इतने बड़े चित्रकार बन गए हो। इसमें घबराने की क्या बात है तुम राजा का धनुष बाण सहित तीरंदाजी वाला पोज बनाओ क्योंकि उसमें एक आंख बंद रहती है इससे तुम्हारा बनाया हुआ चित्र भी सही साबित हो जाएगा और राजा का अपमान भी नहीं होगा।इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता व्यक्ति को अंत समय तक चाहिए होती है।
लेखक:- पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल