रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- मैं नारी हूं
मेरी अवधारणा की मंजूषाऐं,
खुलती हैं परत दर परत
मैं चलती रही हूं अनवरत।
मैं नारी हूं।
धरती का सा लिए धैर्य..
मैं सृष्टि की सृष्टा
त्याग की बेमिसाल मूरत
मैं नारी हूं।
प्रकृति के कई अनुपूरक़
रूपों के
बिम्ब की प्रतिबिम्ब मैं
तारों सी झिलमिलाती हूं।
मैं नारी हूं।
हर युग में मेरा खुद का
परिवेश
समय,परिस्थिति,घर,संसार,
देश व परिवार
सब में है मेरा निवेश।
मैं नारी हूं।
प्रार्थनाएं,विनय,करुणा व
ममता के उत्कृष्टभाव में समाई
मैं सब कुछ समेट कर लाई हूं।
मैं नारी हूं।
केशर,धवल,शीतल, हिमनद सी
दूसरों के दुख -दर्द में
पिघल पिघल कर
चंदन सा स्पर्श देती मैं।
मैं नारी हूं।
मैं आत्मबल से परिपूर्ण,
अदम्य साहसी,वर्तमान की प्रेरणा
व भविष्य की प्रणेता हूं।
मैं नारी हूं।
मेरी गरिमामयी उपलब्धि,
संतुष्टि से सदैव भरा रहता है
मेरा अंतर्मन
आनंद से भर लेती हूं मैं जीवन।
मैं नारी हूं।
कठिन परिस्थितियों से
निकलने का भी है, मुझ में जज्बा।
सपनों में भी जारी रहता है मेरा संघर्ष।
मैं नारी हूं।
एक सिपाही की तरह,
लड़ती रही हूं अव्यवस्थाओं से जंग.
नींद में भी जो कभी ना हारी
मैं नारी हूं।
हाँ,! मुझ में भी हैं
कुछ कमजोरियाँ
कभी कभी मैं यह भी
नहीं जानती
मैं लड़ क्यों रही हूं
आगे बढ़ क्यों नही रही हूं?
मैं नारी हूं।
इतना तो मुझे अनुमान है,
शायद में अपने ही खिलाफ
एक जंग लड़ रही हूं।
धीरे से ही सही पर आगे बढ़ रही हूं।
मैं नारी हूं.।
ऐसा नहीं कि मुझमें
विवेक नहीं है।
लेकिन एक भय भी है
पीछे रहने का
न चाह कर भी अन्याय को सहने का
मैं नारी हूं।
मुझमें एक आदत है
संघर्ष करने की।
औऱ मेरा मुझ पर पूर्ण विश्वास है,
मैं निरंतर आगे बढ़ रही हूं
और बढ़ती रहूंगी।
क्यों कि मैं नारी हूं
लेखक- दया भट्ट किच्छा उत्तराखंड