200 साल पुराना मछली मेला

200 साल पुराना मछली मेला

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रिपोर्ट- मसूरी ब्यूरो
मसूरी-(उत्तराखंड)- उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल मसूरी से सटे जौनपुर क्षेत्र में “अलगाड़ नदी” पर मछलियां पकड़ने का ऐतिहासिक मछली मेले का किया जाता है जिसमें “टिमरू” नामक लकड़ी को पीसकर उसका पाउडर बनाया जाता है जिसे नदी में डाला जाता है जिससे मछलियां कुछ देर के लिये मूर्छित हो जाती है और उसके बाद ग्रामीण मछलियों को पकड़ते हैं।
जौनपुर में मनाये जाने वाला मछली मेला इस बार धूमधाम के साथ मनाया गया इस दौरान ग्रामीणों ने “अगलाड़” नदी में टिमरु से बने पाउडर को नदी में डाल कर मछलियां पकड़ी जहां पर हजारों की संख्या में दूर दराज के ग्रामीणों ने मेले में शिरकत की।

गौरतलब है कि जौनपुर का ऐतिहासिक मछली मेला दशकों से आयोजित किया जाता रहा है बताया जाता है कि टिहरी नरेश नरेंद्र शाह ने वर्ष 1876 में इसकी शुरुआत की थी बताया जाता ये भी जाता है कि टिहरी नरेश ने “अगलाड़” नदी में आकर टिमरु का पाउडर डाला था उसके बाद से निरंतर यहां भव्य मछली मेला आयोजित किया जाता है इस मछली मेले में राज परिवार के लोग भी शामिल होते थे इसी परंपरा को जीवित रखते हुए आज भी जौनपुर के लोगों द्वारा इस मेले का आयोजन किया जाता है और टिमरू से बने पाउडर से मछलियों को पकड़ा जाता है सबसे अधिक मछलियां पकड़ने वाले को पुरस्कार दिया जाता है।
टिमरू के पाउडर से जहां नदी साफ हो जाती है मछलियां भी कुछ देर के लिए मूर्छित होकर फिर से जीवित हो उठती है जाल और कुनियाला से मछलियों को पकड़ा जाता है।

मेला आयोजकों की माने तो ये मेला दशकों से आयोजित किया जाता रहा है और ये मेला आपसी भाईचारा को भी बढ़ाता है।
2 वर्षों से कोरोना काल के दौरान इस मेले का आयोजन नहीं किया गया था लेकिन इस बार बड़ी संख्या में यहां पर ग्रामीण एकत्रित हुवे और मछली मेले का आनंद लिया।

उत्तराखंड