किसी भी सूरत में नहीं बदलने देंगे देवभूमि का सनातन स्वरूप- धामी

किसी भी सूरत में नहीं बदलने देंगे देवभूमि का सनातन स्वरूप- धामी

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर गौर करने की जरूरत है कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री देश का प्रधान मंत्री घुसपैठिए तय नहीं करेंगे। ये बयान देवभूमि उत्तराखंड की सामाजिक और राजनीतिक समस्या पर भी प्रभाव डाल रहा है। जहां मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है और पहाड़ों से पलायन कर रही हिन्दू आबादी का भी स्थान ले सकती है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार ये कहते रहे है कि वे देवभूमि की डेमोग्राफी को बदलने नहीं देंगे। उनके नेतृत्व में सरकार ने कुछ प्रभावी कदम भी उठाए है लेकिन चार मैदानी जिलों में जिला प्रशासन इस ओर गंभीर अब तक नहीं हुआ है।
सनातन नगरी हरिद्वार को तो हरी चादर ने चारों तरफ से घेर लिया है।
राज्य में डेमोग्राफी चेंज का खतरा मंडरा रहा है ये बात बीजेपी के साथ साथ अन्य सनातनी संगठन, संत महात्मा कह रहे है। सरकारी भूमि अतिक्रमण कर बाहरी लोग यहां आकर बस रहे है, खास तौर पर यूपी बिहार झारखंड असम बंगाल आदि राज्यों के मुस्लिम यहां आकर बस रहे है और इन्हें एक योजनाबद्ध तरीके से बसाया भी जा रहा है जिनमें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त ग्राम प्रधान ,जिला पंचायत सदस्यों ,विधायको का गठजोड़ शामिल है।
राज्य की जंग खाई सरकारी मशीनरी इस काम में वो तेजी नही दिखा रही जिसकी उम्मीद सीएम पुष्कर सिंह धामी को रहती आई है।
उत्तराखंड में पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन काल के दौरान किया सरकारी भूमि पर अतिक्रमण से देवभूमि का सनातन स्वरूप बिगड़ रहा है। खास तौर पर केंद्र सरकार की भूमि ,वन विभाग और राजस्व विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से हजारों नही लाखो लोग आकर बस गए है और बसते भी जा रहे है।
सरकारी मशीनरी के पास इस अतिक्रमण को हटाने के लिए या तो फुरसत नहीं है या फिर वो इस काम को फालतू का काम समझ कर अनदेखा कर रही है। जिलों में कुछ अधिकारी ऐसे भी है जो इस अभियान को इस लिए ठंडे बस्ते में डाल देते है कि ” मैं अपने कार्यकाल में क्यों बवाल मोल लूं”? इस सोच के चलते उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में अतिक्रमण की समस्या नासूर बन गई है और इसकी वजह से जनसंख्या असंतुलन एक राजनीतिक ,आर्थिक और सामाजिक समस्या का विकराल रूप धारण रही है।
वन विभाग द्वारा साढ़े तीन हजार एकड़ से अधिक जमीन अतिक्रमण से मुक्त करवाई गई है लेकिन अभी करीब आठ हजार हैक्टेयर भूमि कब्जेदारों के पास है। वन अधिकारियो द्वारा कभी राजनीतिक कारणों से अतिक्रमण हटाओ अभियान सुस्त कर दिया जाता है,तो कभी तेज कर दिया जाता है।
उधर रेलवे की जमीन मसूरी लालकुआं में कब्जा मुक्त की का रही है हल्द्वानी रेलवे की जमीन का विवाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ा हुआ है।
शत्रु संपत्ति पर से देहरादून में अवैध कब्जे नही हटाए जा सके है जबकि नैनीताल में सरकार ने शत्रु संपत्ति खाली करवा कर अपने कब्जे में ले ली है। अभी भी बीस हजार करोड़ की संपत्ति अवैध कब्जेदारी में है।
राजस्व विभाग, ग्राम पंचायत की जमीनों पर हजारों की संख्या में बाहर से आए मुस्लिम बसते जा रहे है स्थानीय नेता उन्हे संरक्षण भी दे रहे है और उनसे चौथ भी वसूल रहे है। पछुवा देहरादून में ऐसे सैकड़ों मामले उजागर हुए है यहां गांव के गांव अपना सामाजिक स्वरूप बदलते हुए देख रहे है।
:—-सीएम धामी का बयान:—–
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते है कि वो देवभूमि उत्तराखंड का सनातन स्वरूप बिगड़ने नही देंगे,हमारे तीर्थ हमारी नदियां पावन है और पूजनीय है जिनका संरक्षण करना इनकी सेवा करना हमारा पहला कर्तव्य है, हम नदियों को जंगल को कब्जा मुक्त कराने का अभियान छेड़ चुके है। ये हिमालय ये शिवालिक हमारे आराध्य देवी देवताओं के वास है।
सीएम धामी कहते है कि हम एक एक इंच सरकारी भूमि कब्जे से मुक्त कराएंगे। बेहतर यही होगा कि अवैध कब्जेदार खुद ही कब्जा छोड़ दे अन्यथा हमारा बुल्डोजर आ रहा है।
सीएम धामी ने सभी जिलाधिकारियों को स्पष्ट कह दिया है कि बिना किसी राजनीतिक, सामाजिक दबाव के अवैध रूप से बसे लोगो को हटाया जाए।
धामी सरकार ने कैबिनेट में अतिक्रमण करने वालो के खिलाफ सख्त कानून बनाने का प्रस्ताव भी पास कर दिया है जो कि आगामी विधानसभा सत्र में रखा जाने वाला है।जिसमे अतिक्रमण करने पर आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर दस साल तक कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है।
:—-कहां कहां चिन्हित हुआ अतिक्रमण:—–
उत्तराखंड राज्य में भागौलिक दृष्टि से 71प्रतिशत क्षेत्र में जंगल भूमि है, जहां सबसे ज्यादा अवैध रूप से अतिक्रमण कारी बसे हुए है, सरकार द्वारा एक सर्वे करवाया गया है जिसमे बताया गया है कि 11814 हेक्टेयर वन भूमि पर बाहर से आए लोगो ने कब्जा किया हुआ है । सर्वे में ये बताया गया कि जिन 23 नदियों में खनन होता है वहां नदी श्रेणी की वन भूमि पर कब्जे किए गए है, दरअसल यहां 2005 तक खनन के लिए श्रमिक बाहरी प्रदेशों से जब आते थे और बरसात में खनन बंद होने के बाद वापिस चले जाते थे।किंतु कांग्रेस शासन काल में ये लोग यहां स्थाई रूप से कच्चे पक्के मकान बना कर बस गए और अब इस कब्जे वाली जगह के सौदे होने लग गए, इस सौदे बाजी को राजनीतिक संरक्षण मिला और अब यहां अवैध बस्तियां जनसंख्या असंतुलन, मुस्लिम तुष्टिकरण का कारण बन गई है।
गंगा तीर्थ नगरी में कुम्भ क्षेत्र को छोड़ दिया जाते तो पूरा जिले में हरी चादर फैल गई है।

हरिद्वार जिले में गंगा, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिले में गौला,कोसी नदी, देहरादून जिले में टोंस, यमुना, कालसी, रिस्पना, नौरा, अमलावा आदि नदियों के किनारे हजारों की संख्या में अवैध रूप से बाहर से लोग आकर बस गए है पुलिस इन दिनों इनका सत्यापन करवा रही है।
:—-मुस्लिम गुर्जरों के कब्जे:—- उत्तराखंड में कॉर्बेट और राजा जी दो टाइगर रिजर्व है, जहां से मुस्लिम गुर्जरों को सरकार ने बाहर निकाल कर,प्रत्येक परिवार को एक एक हैक्टेयर जमीन दी थी, किंतु इन गुर्जरों ने हिमाचल और यूपी से अपने रिश्तेदार बुलाकर बड़े पैमाने पर सैकड़ो हैक्टेयर जमीन कब्जा ली और उसपर खेती करने लगे अब जब सर्वे में इस प्रकरण का खुलासा हुआ तो मालूम हुआ कि तराई पश्चिम पूर्वी वन प्रभाग, देहरादून और हरिद्वार वन प्रभाग में हजारों एकड़ जमीन इन गुर्जरों ने कब्जा ली और फिर खरीद फरोख्त का कारोबार भी करने लगे।
इसमें कई राजनीतिक और वनाधिकारियों के संरक्षण के विषय भी सामने आए, लेकिन सीएम धामी ने स्पष्ट कर दिया कि कोई दबाव नहीं है और उन्हे जंगल बिल्कुल अतिक्रमण मुक्त चाहिए,उन्होंने कहा कि पुराने चले आ रहे गोट खत्ते आबादी को छोड़ कर एक एक इंच सरकारी जमीन खाली करवाई जाएगी।
वन विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए अभी तक तीन हजार एकड़ से ज्यादा जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त करवा लिया है। शेष पर कारवाई चल रही है।
वन विभाग ने कालागढ़ में रामगंगा जल विद्युत परियोजना और ऋषिकेश में आईडीपीएल को लीज पर दी अपनी जमीन को भी वापिस लिए जाने का काम शुरू किया है।
:—–रेलवे राजस्व पीडब्ल्यूडी जलविद्युत सिंचाई की बेशकीमती जमीनों पर कब्जे:—-
अवैध रूप से कब्जे करने वालो ने एक षड्यंत्र के तहत हल्द्वानी रामनगर की रेलवे की जमीनों पर कब्जे किए जिन्हे केंद्र और राज्य सरकार मिल कर खाली करवा रही है, इस मामले में सरकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपने कब्जे की लड़ाई लड़ रही है।
देहरादून जिले में हिमाचल,यूपी से लगे विकासनगर क्षेत्र में ढकरानी आसन बैराज क्षेत्र में जलविद्युत विभाग और सिंचाई विभाग की नहरों के किनारे जमीनों पर हुए अवैध कब्जो को धामी सरकार ने बुल्डोजर चला कर खाली करवा लिया है, यहां बिना अनुमति बनी मस्जिदों और मदरसो को प्रशासन ने खुद हटाने का नोटिस भी दिया है। धर्मपुर, सहसपुर, क्षेत्र में भी अवैध कब्जे चिन्हित हुए है जिन्हे प्रशासन हटाने की तैयारी कर चुका है।
उत्तराखंड में बड़ी संख्या में जलविद्युत परियोजनाओं पर काम हुआ,यहां काम करने आए श्रमिक और अन्य लोग यहां की जमीनों पर अवैध रूप से बस गए, पिछले दिनों टिहरी डैम के पास मस्जिद बनाने का प्रकरण चर्चा में आया जिस पर बवाल हुआ, इसी तरह से सीमावर्ती धारचूला क्षेत्र में भी अवैध कब्जे हुए।
उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड और अन्य सड़क प्रोजेक्ट चल रहे है जिसकी आड़ लेकर यहां लोग पहाड़ो की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसने लगे जिन्हे अब धामी सरकार बुल्डोजर से ध्वस्त कर रही है।
इसी तरह राजस्व, पीडब्ल्यूडी, विभाग की जमीनों पर भी अवैध कब्जे होते चले गए, जिन्हे अब प्रशासन हटा रहा है।
:—-धार्मिक चिन्हों की आड़ लेकर हुए कब्जे:—–
वन,पीडब्ल्यूडी ,रेलवे, सिंचाई भूमि पर धार्मिक चिन्हों की आड़ लेकर कब्जे करने की नियत से मजारे, मस्जिद मदरसे, बना दिए गए जिन्हे धामी सरकार ने सख्ती से हटाना शुरू कर दिया है। कॉर्बेट और राजा जी टाइगर रिजर्व जहां इंसान के पैदल चलने की अनुमति नही वहां मजारे बना दी गई जिन्हे अब धामी सरकार ने हटवा दिया है रिजर्व फॉरेस्ट अलावा सरकारी अस्पताल परिसर, कैंट एरिया, सड़को के किनारे भी अवैध मजारे ,कहीं कहीं मंदिर, गुरुद्वारे भी कब्जे की नियत से बनाए गए, ऐसे 594 अवैध धार्मिक कब्जो को भी हटाया गया है।जिनमे 552अवैध मजारे भी शामिल है
:—-शत्रु संपति पर भी कब्जा:—-
उत्तराखंड में नैनीताल में होटल मेट्रो पॉल शत्रु संपत्ति परिसर में सैकड़ों लोगो ने कब्जा किया हुआ था,करीब तीन सौ करोड़ की गृह मंत्रालय की इस संपत्ति को धामी सरकार ने बुलडोजरों ने खाली करवा लिया है।ये कब्जेदार, रामपुर मुरादाबाद जिले से यहां अवैध रूप से बसे हुए थे। नैनीताल की घोड़ा बस्ती भी ध्वस्त कर दी गई है जोकि आयरपाटा के जंगल में अवैध रूप से बना दी गई थी। अभी किच्छा देहरादून हरिद्वार में भी शत्रु संपत्ति को खाली करवाने के लिए नोटिस दिए गए है। शत्रु संपत्ति उसे कहते है जोकि आजादी के दौरान इसके स्वामी भारत में छोड़ कर पाकिस्तान चले गए,ये संपत्ति के गृह मंत्रालय के स्वामित्व में आती है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के पालन
सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक संरचनाओं के मामले में पहले 2009 और 2019 में पुनः निर्देशित किया है कि कोई भी नया धार्मिक स्थल बिना जिलाधिकारी की अनुमति के, निजी भूमि पर भी नही बनाया जा सकता, सरकारी भूमि पर ये अतिक्रमण की श्रेणी में रखा गया है। यदि कोई पूर्व में बना हैं और उसकी मरम्मत भी होनी है तो उसके लिए भी डीएम की अनुमति आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय ने ऐसे अतिक्रमण प्रकरण की निगरानी के लिए उच्च न्यायालय को नियुक्त किया हुआ है। जिला प्रशासन को इस बारे में हाई कोर्ट को रिपोर्ट देनी है। धामी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत ही धार्मिक संरचाओ को हटाया है।
नैनीताल हाई कोर्ट ने सड़को के किनारे और वन भूमि को कब्जा मुक्त करने के कड़े निर्देश जारी किए है और कारवाई के फोटो ग्राफ भी प्रशासन को हाई कोर्ट में जमा करने को कहा है।
:—-एनजीटी भी आदेश देकर बेबस:—–
उत्तराखंड के नदी नाले तालाब आदि पर अतिक्रमण है
गंगा जमुना में जाकर मिलने वाली नदियों ने इस मानसून में तबाही मचाई है और सचेत किया है कि उनकी राह के रोड़े हटाए जाए,यही बात राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने बार बार राज्य सरकार को आदेशित की है और पहले भी देहरादून जिला प्रशासन पर एक लाख रु का जुर्माना भी डाला था, गौरतलब बात ये है कि हाई कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों का पालन करने में प्रशासन ने कोताही बरती है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी बार बार इस बारे में शासन को सचेत कर रहा है।
:—–अतिक्रमण करने वालो को दस साल की सजा का बिल भी लटका:—–
उत्तराखंड की धामी कैबिनेट ने एक अध्यादेश लाने का प्रस्ताव पास किया है।जिसमे सरकारी और निजी भूमि पर अतिक्रमण करने वाले के खिलाफ आईपीसी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने और उसे दस साल तक कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है लेकिन इसे लेकर कोई कारवाई नहीं की जाती, धामी सरकार ने अतिक्रमण करने वालो के खिलाफ गैंगस्टर और रासुका जैसे कठोर कानून लगाने के लिए पुलिस प्रशासन को स्वतंत्रता दी है परंतु शासन स्तर पर ढुल मुल कारवाई से ये विषय अधर में लटका हुआ है।

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