*आध्यात्म विशेष*- श्रेष्ठ जीवन का विशिष्ट आधार है हिम्मत

*आध्यात्म विशेष*- श्रेष्ठ जीवन का विशिष्ट आधार है हिम्मत

Spread the love

रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- हिम्मत का आधार है ईमानदारी। ईमानदारी हमारी योग्यता को बढ़ाता है दूसरों के प्रति नही बल्कि स्वयं के प्रति भी ईमानदार बनना अर्थात सच्चे दिल से बनने वाले लक्ष्य पर चलते रहना यदि दूसरों के अनुसार अपने वाणी को,कर्म को,स्वांस को व संकल्प को संग दोष में व्यर्थ तरफ गंवाते हैं और स्वचिंतन की बजाए परचिंतन करते हैं तो उसे आॅनेस्ट या ईमानदार नही कहेंगे।
ईमानदार होना अर्थात सदैव अपने संकल्प,बोल और कर्म द्वारा हर कदम में समर्थ स्थिति का अनुभव करना है। ईमानदार होना अर्थात हर कदम में चढ़ती कला का अनुभव होना है गिरती कला का अनुभव होना अर्थात अपने प्रति ईमानदार न होना है। ईमानदारी के द्वारा स्वयं को प्रत्यक्ष करने का सबसे बड़ा साधन है और अनेक प्रकार के बुद्धि के उपर बोझ को समाप्त करने की सरल युक्ति है।

स्वयं को स्पष्ट रखना ही श्रेष्ठ बनना है लेकिन हम व्यवहार में कुछ दूसरा करते हैं बताते कुछ हैं और छिपाते अधिक हैं बताते भी हैं तो किसी सहूलियत के प्राप्त के आधार है अथवा स्वार्थ के आधार पर।
चतुराई से अच्छी तरह प्लान बनाकर पेश होते हैं दूसरों को भोला समझकर चतुराई से अपने आपकों सच्चा सिद्ध करने का रिजल्ट उल्टा पड़ता है दूसरे के द्वारा बताई हुई चीज को खुश करने का अर्थ हां जी का पाठ अल्पकाल के लिए पक्का करना है लेकिन चेक करें कि हमारे भीतर सहन करने की शक्ति और सामना करने की शक्ति कहां तक हैं इस राज को जानते रहेंगे तो हम नाराज नही होंगे और दूसरों को आगे बढ़ाने की युक्ति बताएंगे और उन्हें राजी भी करेंगे।
किन्हीं बातों के आधार पर फाउंडेशन न हो तभी हम ईमानदार कहलाएंगे अर्थात हर बात अपने अनुभव के आधार पर और प्राप्ति के आधार पर अपना फाउंडेशन बनाएंगे यदि बात बदल गई और फाउंडेशन बदल गया तो हमारे निश्चय में संशय का आना अनिवार्य है। हम क्यों? कैसे के क्वेश्चन में आ जाते हैं तब उस प्राप्ति के आधार पर अपना अनुभव नही कहेंगे ऐसा कमजोर फाउंडेशन छोटी बात में भी हलचल पैदा कर देता है।
[banner caption_position=”bottom” theme=”default_style” height=”auto” width=”100_percent” group=”banner” count=”-1″ transition=”fade” timer=”4000″ auto_height=”0″ show_caption=”1″ show_cta_button=”1″ use_image_tag=”1″]
अपनी बात रखते हुए खुद को निर्दोष बनाकर खुदा को दोषी ठहरा देते हैं इससे सिद्ध है कि स्वयं का अनुभव और प्राप्ति के आधार पर फाउंडेशन नही है बल्कि हमारे फाउंडेशन का आधार कुछ दूसरा है यह ईमानदार होने का लक्षण नही है।
जो स्वयं को कंट्रोल नही कर सकते वह विश्व,राज्य को कैसे कंट्रोल करेंगे।
योग तो सीखा है लेकिन योग युक्त रहने की युक्तियों को प्रयोग करना नही आता है। योग युक्त करते हैं परन्तु प्रयोग में लाने का अटेंशन नही रखते हैं योग द्वारा मिली हुई सामना करने की शक्ति का स्वयं पर प्रयोग नही करते हैं और परमात्मा को सामने कर देते हैं।
हमें शक्ति दो,मदद दो यह आपका ही काम है आप न करेंगे तो कौन करेगा थोड़ा सा आशीर्वाद दे दो आप तो सागर हो हमकों को थोड़ी सी आंचल ही दे दो।
सब कहते हुए स्वयं की सामना करने की हिम्मत छोड़ देते हैं और हिम्मतहीन बनने के कारण परमात्मा के मदद से भी वंचित रह जाते हैं।
श्रेष्ठ जीवन का विशिष्ट आधार है – हिम्मत जैसे स्वांश नही तो जीवन नही वैसे हिम्मत नही तो श्रेष्ठ जीवन नही।
विशेष कमजोरी का आधार यह है कि हर शक्ति व ज्ञान की युक्ति को स्वयं के प्रति यूज नही करते हैं। सिर्फ वर्णन करने तक रूक जाते हैं।
अंर्तमुखी होकर हर शक्ति का धारण करने का अभ्यास करना चाहिए जैसे कोई भौतिक वस्तु का आविष्कार करने वाला व्यक्ति दिन रात उसी इन्वेंशन की लगन में खोया रहता है वैसे ही हमें भी हर शक्ति के अभ्यास में खोये रहना चाहिए जैसे सहनशक्ति व सामना करने की शक्ति जो हमें प्राप्त होती है उसको समय-समय पर यूज करें।
सहनशक्ति न होने के कारण हम अनेक प्रकार के विध्नों के वशीभूत हो जाते हैं माया का रूप क्रोध के रूप में सामना करने आए तो हमें किस रीति से विजयी बनना है यह पता होना चाहिए। कौन-कौन सी परिस्थितियों के रूप में माया सहनशक्ति का पेपर ले सकती है इसका पहले से ही पता होना चाहिए। राॅयल पेपर हाॅल में जाने से पहले स्वयं का मास्टर बनकर स्वयं का पेपर दें तब रियल इम्तिहान में कभी फेल नही होंगे।
अभ्यास कम करते हुए सभी विस्तृत वर्णन करने वाले व्यास बन गए हैं लेकिन अभ्यास नही करते हैं इस प्रकार स्वयं को बिजी नही रखने आने पर माया हमको बिजी कर देती है। अगर सदा अभ्यास में बिजी रहेंगे तब व्यर्थ संकल्पों की कम्लेंट समाप्त हो जाएगी। हर बात का प्रयोग करने के विधि में लग जाना चाहिए अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठे रहें तो अनेक विध्नों से किनारा होने का अनुभव करेंगे यदि सागर में उपर-उपर लहरों में लहराते रहेंगे तो अल्पकाल की रिफ्रेंशमेंट का अनुभव करेंगे लेकिन जब सागर तले में जाएंगे तो अनेक प्रकार की विचित्र अनुभव प्राप्त करके रत्न को प्राप्त करेंगे और समर्थ बन जाएंगे।
(अव्यक्त बाप-दादा, महावाक्य मुरली 25 जून 1977)
विस्तृत आध्यात्मिक आलेख के लेखक मनोज श्रीवास्तव मेडिटेशन के नवीन आयाम व प्रभारी मीडिया सेंटर विधानसभा देहरादून हैं।।।।

उत्तराखंड