रिपोर्ट- राजू पाण्डे
नैनीताल- युगमंच ये सिर्फ एक नाम या एक संस्था नही है बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति,लोक रंगों,लोक विरासतों और समृद्ध परंपराओं की एक कड़ी है जो अपने आप मे युगों से युगों तक की गाथा बयां करती है।
1976 में पहाड़ के लोक साहित्य,लोक कला, लोक गाथाएं व लोक रंगकर्म को सहेजने भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करने व हमारी इस विरासत को अक्षुण्य रखने के मकसद से युगमंच की स्थापना हुई, अपने प्रादुर्भाव से अब तक युगमंच ने 100 से अधिक नाटकों के मंचन द्वारा रंगमंच में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।
1976 में युगमंच ने “अंधा युग” नाटक का मंचन कर हमारी समृद्ध विरासत को रोशन किया था और रोशनी का ये सफर तब से अनवरत जारी है।
युगमंच के संस्थापक सदस्य जहूर आलम का योगदान इसमें मील का पत्थर साबित हुआ अपनी संस्कृति व परंपराओं को सहेज कर रखने के उनके जुनून को कई सम्मान मिले जिसमे हाल ही में हिंदुस्तान के एक बड़े सम्मान पाटिल पुत्र अवार्ड से भी उन्हें नवाजा गया है।
युगमंच पिछले 45 वर्षों से नाट्य शिविर बालरंग कार्यशालाएं,लोक रंग,लोक विरासत,संगीत समारोहों व सेमिनारों के माध्यम से लगातार हमारी विरासत को फैला रहा है परिणाम स्वरूप आज हमारी गौरवशाली विरासत चाहे प्राचीन होली गायन हो या फिर लोक रंग हमारी समृद्ध विरासत देश की सीमाओं को लांघकर विदेशों तक धूम मचा रही है