कुमाऊं के झरोखों से- पौस का पहला इतवार और बैठकी होली

कुमाऊं के झरोखों से- पौस का पहला इतवार और बैठकी होली

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- सम्पूर्ण कुमाऊं अंचल में पौस के पहले इतवार का बहुत महत्व है ये दिन यहाँ के धर्म,आस्था और परम्पराओं से तो जुड़ा है ही साथ ही जुड़ा है यहाँ के लोक रंग से।
कुमाऊं में पौस के पहले इतवार(ठुल इतवार) से बैठकी होली का दौर शुरू हो जाता है जो टीके के दिन तक चलता रहता है।
कुमाऊं में ये परम्परा कब से ये कहना तो मुश्किल है लेकिन ये विधा चंद्र शासनकाल में भी विद्यमान थी और ऐसा माना जाता है कि राजा कल्याण चन्द्र के दरबार में होली गायन हुआ और तब से ये परम्परा अनवरत चलती आ रही है कुमाऊं की बैठकी होली में पाई जाने वाली होलियाँ ब्रजभाषा में ही है यहाँ की गायकी की महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस शैली में यहाँ होली गाई जाती है उस शैली में अन्यत्र नही गाई जाती।

यहाँ की होली की सबसे महत्वपूर्ण बात ठुमरी अंश की प्रधानता है और जो पुराने होली गायक है उनकी गायकी में उनकी अपनी “ठाट” स्टायल है।
होली के जितने भी गाने है वह सभी शास्त्रीय संगीत में बद्ध है यह गायन कला इस अंचल के लोगों को विरासत में मिली है।
चूंकि आज पौस का पहला इतवार है और आज से नैनीताल में भी बैठकी होली की शुरुआत हो गई है रामसेवक सभा में आयोजित बैठकी होली का शुभारंभ पूर्व विधायक नारायण सिंह जंतवाल,सभा के अध्यक्ष मनोज साह और डॉ ललित तिवारी ने दीप प्रज्वलित कर किया जिसके बाद होल्यारों ने कार्यक्रम में समा बांध दिया।

चूंकि शीत ऋतु अपने चरम पर है इस समय सम्पूर्ण कुमाऊं अंचल जड़वत हो जाता है ऐसे में बैठकी होली इस अंचल में ठंड के अहसास को भुला देती है सुनसान ठिठुरती रातों में जब कर्णप्रिय वाद्ययंत्रों के साथ होली के राग निकलते है तो ये सामूहिक गायन ठंड के अहसास को कम कर देता है।
ऐसी गौरवशाली परम्परा को समेटे है हमारी धरा आज हम सबको जरूरत है युवा पीढ़ी को इन परम्पराओं से जोड़ने की सोशल मीडिया से बाहर निकलकर समाज के इन अनगिनत रंगों को देखने की।।।

उत्तराखंड