धुंआ धुंआ सी जिंदगी- पहाड़ों में डिप्रेशन की दस्तक

धुंआ धुंआ सी जिंदगी- पहाड़ों में डिप्रेशन की दस्तक

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- कहते हैं एक बार आप अपनी उम्मीदों को चुन लें फिर कुछ भी संभव है लेकिन कोरोना महामारी की विपरीत परिस्थितियों ने लोगों से उम्मीद छीन ली हम में से कई लोग जो विपरीत परिस्थितियों में उपजी नकारात्मकता से उबर नही पाये वो पूरी दुनिया से एकाकी हो गये परिवार से कटे,समाज से कटे नतीजा मानसिक अवसाद का स्याह अंधेरा।
किसी ने इस अवसाद को धुंवे में उड़ाया,किसी ने ड्रग्स में डुबोया तो किसी ने शराब में बहाया जीवन की उम्मीद जैसे नशे पर आकर खत्म हो गई।

आमतौर पर पहाड़ों में डिप्रेशन से लोग कोसों दूर थे हालाकि यहाँ नशे का प्रचलन है पर “तनाव” ना के बराबर लेकिन कोरोना काल ने पहाड़ो में भी डिप्रेशन की दस्तक दे दी है नैनीताल जैसे छोटे से शहर में हर रोज एक दर्जन से अधिक मानसिक रोगी बीड़ी पाण्डे जिला चिकित्सालय में पहुंच रहे है जो इस अवसाद से उबरना चाहते है।

मनोचिकित्सक डॉ गिरीश पाण्डे के मुताबिक कोरोना से प्रभावित होने वाले अंगो का हिस्सा दिमाग भी है चूंकि कोरोना ने क्या बड़े क्या बच्चे सबकी दिनचर्या को प्रभावित किया जिसका असर लोगों के मन मस्तिष्क पर भी पड़ा।

मनोचिकित्सकों का कहना है कि तनाव से बचने के लिये सामाजिक दायरा बड़ाये,परिवार के साथ वक्त बिताये और स्वच्छ जीवन शैली अपनायें।
डिप्रेशन इंसान से है ना कि इंसान डिप्रेशन है, इसलिये इसे खुद पर हावी ना होने दें, मस्त रहें, व्यस्त रहें,मुस्कुराते रहें, स्वस्थ रहें।।।।

उत्तराखंड