प्रकृति को सिसकता छोड़ चला गया ‘वृक्षमित्र’

प्रकृति को सिसकता छोड़ चला गया ‘वृक्षमित्र’

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रिपोर्ट- रामनगर(उत्तराखंड)
रामनगर(उत्तराखंड)- दुनिया भर में ‘वृक्षमित्र’ नाम
से चर्चित पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को क्रूर कोरोना ने हमसे छीन लिया। टिहरी गढ़वाल के एक गाँव में 9 जनवरी1927 को जन्में बहुगुणा के जीवन पर जिन दो महानायकों का सर्वाधिक प्रभाव था उनमें श्रीदेव सुमन और महात्मा गाँधी प्रमुख हैं।मात्र चौदह वर्ष के किशोर मन में समाज-सेवा की जो लत लगी वही उनकी अमिट पहचान बन गयी।
1947 में लाहौर से बीए की पढ़ाई करके टिहरी लौटने के बाद समाज में फैले अंधविश्वास,मंदिरों में दलितों के प्रवेश की लड़ाई ,शराबबंदी और बालिका शिक्षा सहित तत्कालीन क्रूर राजशाही के खिलाफ आवाज़ उठाई।
कालांतर में साठ के दशक में चिपको आंदोलन को वैश्विक ख्याति दिलाने का श्रेय बहुगुणा जी को जाता है।

कहते हैं चौबीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली परंतु शादी के वक्त पत्नी विमला नौटियाल ने साफ-साफ कह दिया कि यदि आपको राजनीति में रहना है तो मुझे शादी नहीं करनी उसके बाद तो उनके जीवन का रुख ही बदल गया।
पत्नी के सहयोग से बहुगुणा जी ने *पर्वतीय नवजीवन मंच* की स्थापना की टिहरी बाँध के विरोध में 74 दिनों तक हड़ताल का संदेश यही था कि जनता हिमालय सहित वन-संपदा-संरक्षण हेतु जागरुक हो।
सन् 1981 में जब उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देने हेतु दिल्ली बुलाया गया तो यह कहकर उन्होंने लेने से मना कर दिया जब तक पेड़ों की कटाई नहीं रुकेगी तब तक मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता उसके थोड़े दिन बाद तत्कालीन पीएम इंदिरा गाँधी से मिलकर 15 वर्षों तक पेड़ों को काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया जो उन्होंने तुरंत मान लिया था।
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सन्1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार, 2009 में पद्मविभूषण से नवाजे गये श्रीबहुगुणा जी उत्तराखंड के जंगल-जमीन,पानी-पहाड़ मिट्टी और मानुष के लिए जिये और उसी में विलीन हो गये।विन्रम श्रद्धाञ्जलि।
आलेख:- पेशे से व्याख्याता संतोषकुमार तिवारी
रामनगर,नैनीताल में रहते हैं।जन-सरोकारों के मुद्दे पर वर्षों से सक्रिय हैं।

उत्तराखंड