बिच्छू का डंक- कोरोना का अंत

बिच्छू का डंक- कोरोना का अंत

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रिपोर्ट- शिवेंद्र गोस्वामी वरिष्ठ संवाददाता
अल्मोड़ा-(उत्तराखंड)- सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा के जंतु विज्ञान विभाग एवं राष्र्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में किये गए शोध में बिच्छू घास में 23 ऐसे यौगिकों के खोज की गयी है जो कोरोना वायरस से लड़ने में काफी कारगर हो सकते हैं। जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं शोध प्रमुख डॉ मुकेश सामन्त ने बताया कि इस शोध में उनके साथ राष्र्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के डॉ अवनीश कुमार एवं सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा के शोधार्थी शोभा उप्रेती सतीश चंद्र पांडेय और ज्योति शंकर ने कार्य किया।

डॉ सामन्त ने बताया कि यह शोध कार्य स्विट्ज़रलैंड से प्रकाशित वैज्ञानिक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर के मॉलिक्यूलर डाइवर्सिटी में प्रकाशित किया है। उन्होंने बताया कि इस शोध में उनके द्वारा बिच्छू घास में पाए आने वाले 110 यौगिकों को मॉलिक्यूलर डॉकिंग विधि द्वारा स्क्रीनिंग की गयी, जिसमें से 23 यौगिक ऐसे पाए गए जो हमारे फेफड़ों में पाए जाने वाले एसीई-2 रिसेप्टर से आबद्ध हो सकते हैं और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोक सकने में काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। वर्तमान में इन यौगिकों को बिच्छू घास से निकालने का काम चल रहा है, उसके बाद इन यौगिकों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल भी किया जा सकता है।

उनकी इस उपलब्धि पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति प्रो नरेन्द्र सिंह भंडारी एवं योग एवं नेचुरोपैथी के विभागाध्यक्ष डॉ नवीन भट्ट ने प्रसन्नता वयक्त करते हुए कहा कि यह कोरोनाकाल में बहुत बड़ी उपलब्धि है। प्राकृतिक रूप से उत्तराखंड में अनेक योगिक है जो कोरोना से लड़ने में सक्षम है और उम्मीद जताई की उत्तराखंड में पाए जाने वाले औषधीय पौधे और उनसे प्राप्त यौगिक कोरोना और अन्य संक्रमणों को रोकने में कारगर सिद्ध होंगे।

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