संस्कृति का निराश पहरुवा- अपना पूरा जीवन संस्कृति संरक्षण मे समर्पित पदमश्री डॉ यशोधर मठपाल से मुंह फेरती सरकार,कैसे हो उद्धार?

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रिपोर्ट- राजू पाण्डे
नैनीताल:- संस्कृति को समर्पित 50 दशक से अधिक का समय ललित कला,गुफा कला व गांधी अध्ययन में डिप्लोमा संस्कृति संरक्षण व शोध मे सहायक 50 से अधिक पुस्तको की रचना,250 संकलित शोध पत्र,20 हजार से अधिक चित्रों का सृजन उत्तराखण्ड की 400 गुफाओं मे प्रलेखन कार्य कुल मिलाकर संस्कृति और कला को समर्पित एक युग, हम बात कर रहे है लोक संस्कृति संग्रहालय गीताधाम के संस्थापक पद्मश्री डॉ यशोधर मठपाल की।
लेकिन संस्कृति का ये महान पुरोधा आज निराश है कारण सरकारों की उदासीनता और उपेक्षा अपने निजी प्रयासों से 1983 मे लोक संस्कृति संग्रहालय स्थापित किया और अपने प्रयासों से गीताधाम को न केवल देश बल्कि पूरे विश्व के एक मात्र गुफा कला केंद्र के रुप मे स्थापित कर दिया आज गीताधाम मे शोध छात्रों से लेकर प्रशासनिक अधिकारी भी ज्ञानाजर्न को आते है।

लोक संग्रहालय गीताधाम को इस स्तर तक लाने मे मठपाल जी ने न केवल अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया बल्कि अपनी सारी जमा पूंजी भी लगा दी आज हालात ये है कि तकरीबन 4 एकड़ मे फैले इस संग्रहालय की देखरेख को कोई स्टाफ तक नही है।

उम्र के इस पढ़ाव मे अब मठपाल जी इसके भविष्य को लेकर चिंतित है हालांकि इनके सबसे बड़े बेटे इनकी मदद करते है लेकिन कमजोर आर्थिक स्थिति और सरकार की उपेक्षा के कारण वो पूरी तरह निराश है।

अब तक सरकारों के तमाम नुमाइंदे यहा तक कि खुद मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव तक यहा आ चुके है सबने देखा,आश्वासन दिया और भूल गये इनकी उपेक्षा से आहत मठपाल जी ने अब संग्रहालय की पूरी जमीन,भवन और सारी सांस्कृतिक धरोहर को संग्रहालय प्रबंधन कमेटी को दान करने का मन बना लिया है उनका मानना है कि राष्टीयकरण के बाद संग्रहालय नष्ट हो जाते है।

सारा जीवन निःस्वार्थ भाव से संस्कृति संरक्षण मे लगाने वाले मठपाल जी की सरकार से एक ही मांग है कि जैसे दुनिया मे और संग्रहालय स्थाई निधि से चल रहे है वैसी ही निधि उनको भी मिले जिससे कि सांस्कृतिक धरोहर बची रहे और लोगो को रोजगार भी दे सके।

पद्मश्री,कलाश्री,हिन्दू रत्न,उत्तराखंड गौरव,कुमाऊं गौरव,केदार सम्मान,कालीदास चित्रकला सम्मान,गुफाकला विशेषज्ञ सम्मान से सम्मानित मठपाल जी ने अपने लिये कभी कोई चाह नही कि आज भी अगर उनकी कुछ मांग है तो वो समाज के लिये अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिये गीताधाम के लिये।
सरकार से हम भी ये मांग करते है कि कला व संस्कृति के इस संवाहक की तरफ ध्यान दे ताकि इनके जीवन की पूंजी यानि गीताधाम संरक्षित हो सके उसकी देखरेख हो और आर्थिक संकट इसमे बाधा न बने और ये संग्रहालय आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान देता रहे।