सवाल जमीन का?जवाब कही नही

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रिपोर्ट- राजू पाण्डे
नैनीताल- जल,जंगल,जमीन उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की अहम कड़ी यहाँ की खूबसूरत वादियाँ,स्वास्थ्यवर्धक आबोहवा और शांत वातावरण लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है यही वजह है कि जो एक बार यहॉ आया वो इसे भूला नही पाया और बड़ी तादात में बाहरी लोगों ने यहाँ अपने आशियाने बना लिये और हमारी सरकारों के पास जमीन के कोई ठोस आंकड़े मौजूद ही नही है क्योंकि 1960-64 के बाद यहाँ जमीन की बंदोबस्ती ही नही हुई।

बंदोबस्ती से जुड़ा थोड़ा सा इतिहास जान लेते है 1823 में अंग्रेजो ने पहला बंदोबस्त किया उस वक्त करीब 20 प्रतिशत जमीन पर खेती करने का रिकॉर्ड दिया था जो आज घटकर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 12 प्रतिशत ही रह गई है और अभी भी हमारी खेती की भूमि लगातार घट रही है और बंदोबस्ती के बिना वास्तविक स्थिति का पता नही चल पा रहा है।
आजादी के बाद 1960 के दशक में जमीन की बंदोबस्ती 40 वर्ष के लिये की गई लेकिन आज 54-55 वर्ष बाद भी बंदोबस्ती नही की गई।
2000 में उत्तराखंड का उदय हुआ लेकिन किसी भी सरकार ने बंदोबस्ती की जरूरत महसूस नही की और लगातार खेती की जमीन का गैर खेती इस्तेमाल होता रहा नये जिले बने,तहसीलें बनी, स्कूल बने,मकान बने,सड़के बनी जो सभी खेती वाली जमीन में ही बने जबकि राजस्व के अभिलेखों मे आज भी खेतों में खेती ही हो रही है।

हालांकि अभिलेखों से हटकर वास्तविकता देखें तो आज फसलों की जगह बड़े बड़े काम्प्लेक्स,मॉल और कंकरीट उग रहे है सरकार के अनुसार 12 प्रतिशत कुल खेती की जमीन है जिसमे साढ़े सात प्रतिशत पहाड़ में बची है जबकि जानकर बताते है पहाड़ो की खेती की जमीन 4 प्रतिशत ही बची है क्योंकि लोगो ने अपनी जमीन बाहरी लोगों को बेचनी शुरु कर दी जिसमे लगातार निर्माण हो रहे है।
आपको बता दें कि उत्तराखंड की राजनीति के स्तम्भ रहे पूर्व मुख्यमंत्री एन डी तिवारी के समक्ष लोगों ने कई बार बंदोबस्ती का मुद्दा रखा पर नतीजा सिफर ही रहा।
हालांकि अब सरकार अनिवार्य चकबंदी की बात कर रही है मगर बंदोबस्ती के बगैर ये कितना सफल होगा ये कहना थोड़ा मुश्किल है जब तक बंदोबस्ती ना हो तब तक कैसे होगी चकबंदी?
ये सवाल है सरकार के लिये।।।।