Exclusive- नेपाल से हॉगकॉग तक-जमी से फलक का सफरनामा

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- “कौन कहता है आसमान में छेद नही हो सकता,एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो” जब हौंसला हो,जज्बा हो जीने की ललक हो तो लाख यातनाओं के बाद भी इंसान वो मुकाम पा ही लेता है जहाँ उसकी शख्सियत,उसकी गाथा,उसका संघर्ष खुद उसका परिचय देता है।


कैसे कोई जमी से फलक तक का सफर तय कर लेता है इसका बेहतरीन उदाहरण है “बासु राय” बासु के पिता सिक्ख परिवार से ताल्लुक रखते थे और एक बार डांसर से शादी के बाद परिवार का विरोध झेल नही पाये और भारत छोड़कर नेपाल चले गये बासु के जन्म के बाद उनकी माँ मायानगरी लौट गई और फिर कभी वापस नही आई जब बासु 4 वर्ष के थे तब पिता का साया भी सर से उठ गया।

एक मासूम अनाथ हो गया नेपाल की सड़कों पर कभी भीख मांगी तो कभी चोरी की कुछ गलत लोगों के संगत में जेब काटनी भी शुरू कर दी चार वर्ष तक अनेक तरह का शोषण,लोगों की दुत्कार,मार झेलता बासु नेपाल की गलियों की खाक छानता रहा।
नेपाल की स्वयंसेवी संस्था सिविन की नजर सड़क पर बेहोश पड़े बासु पर पड़ी वो उसे अपने साथ ले गये।

हमेशा समाज से दुत्कारे गये बासु के लिये सिविन संस्था का प्यार किसी संजीवनी से कम न था सिविन संस्था ने बासु को पुनवर्सन केंद्र भेज दिया जहाँ विदेशी शिक्षक मुफ्त में शिक्षा देते थे 1997 में कैलाश सत्यार्थी एक बच्चे को ढूंढ रहे थे जो दुनिया भर में शोषण झेल रहे बच्चो की आवाज बन सके पूरा बचपन संघर्ष में तप कर सोना बन चुके बासु का चयन कैलाश सत्यार्थी के ग्लोबल मार्च के लिये हो गया फिर शुरू हुआ नेपाल की सड़कों से हांगकांग का सफर।
कैलाश सत्यार्थी के शोषण से शिक्षा तक “लेट्स स्टॉप चाइल्ड लेबर मिशन” के तहत बासु ने 7.2 मिलियन अन्य प्रतिभागियों के साथ 80 हजार किमी मार्च किया।
2014 में कैलाश सत्यार्थी को इसी मिशन के लिये नोबेल पुरस्कार मिला जिसका हिस्सा बासु भी थे उन्होंने इस मिशन में 7.2 मिलियन प्रतिभागियों का प्रतिनिधित्व किया था उसके बाद बासु ने “बसु राय फ्रॉम द स्ट्रीट्स ऑफ काठमांडू” पुस्तक लिखी जो हमारे समाज,हमारी शिक्षा प्रणाली के साथ ही उस सिस्टम पर सवाल खड़ा करती है जहाँ अनाथ बच्चे गुमनाम शोषित जीवन जीने को मजबूर है।

आज बासु अपने प्रयासों से लगभग 6000 बच्चों को बाल व्यापार से मुक्त करा चुके है हजारों गरीब बच्चो को स्कूल में प्रवेश दिला चुके है और ऐसे अनाथ शोषित बच्चो को जीवन की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये उनका “बासु राय पहल फाउंडेशन” भी काम करता है।
आज बासु 31 वर्ष के हो चुके है कैसे हुआ उनका शोषण से शिक्षा तक का सफर एक अनाथ बच्चा नेपाल की सड़कों से निकलकर किस तरह दुनिया की आवाज बना।
बासु का संघर्ष और उनकी जमी से फलक तक के इस चुनौतीपूर्ण सफरनामें को सलाम है जो पूरे देश के लिये प्रेरणा बन गये।।।।