(Exclusive) मालरोड की पहचान,रिक्शे नैनीताल की शान

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रिपोर्ट- राजू पाण्डे
नैनीताल- अगर आप नैनीताल घूमने आयें और आपने रिक्शा की सवारी नही की तो आपका नैनीताल का सफर अधूरा ही रह जायेगा ये हम नही ये लोगों के अनुभव बताते है गर्मियों में वादियों की सुहावनी शाम आसमान से बातें करते चिनार के पेड़ और मन मोहती नैनीझील के साथ रिक्शा की सवारी और तन को छूते ठंडी हवा के झोंके आपके सफर में एक न भूलने वाली याद जोड़ देता है।

अब हम आपको यहां रिक्शो के इतिहास से रुबरु कराते है यूं तो यहां अंग्रेजो के समय से ही रिक्शा चलते थे चूंकि नैनीताल अंग्रेजो की छोटी विलायत थी और आम लोगों को इनमें बैठने की अनुमति नही थी ये रिक्शे अधिक ऊंचे थे और यहां के लोग इन्हें जोकर गाड़ी कहते थे लेकिन इनमें एक दिक्कत थी ये ऊंचे अधिक होते थे और कई बार सवारियां गिर जाती थी इसलिये अंग्रेजो ने इन्हें बंद कर दिया।

आजाद नैनीताल में 1951-52 में रिक्शों का संचालन शुरु हुआ उस वक्त 25 रिक्शे मालरोड की पहचान बने जो नैनीताल की शान बड़ाने लगे आज यहां रिक्शों की संख्या 82 हो गई जो निरंतर यहां की शान बड़ा रहे है।

यहाँ पर आपको रिक्शों के लिये टिकट वितरण प्रणाली मिलती है जो पूरे भारतवर्ष में नैनीताल के अलावा और कही नही है।
धीरे धीरे वक्त बदला हर घर मे वाहन हो गये और तो और टैक्सियां,बाइक टैक्सियों की संख्या बड़ी नैनीताल से अधिकांश ऑफिस शिफ्ट हो गये ऐसे कई कारण रिक्शों के चलन को प्रभावित करने लगे है और कहीं न कहीं इनके स्वर्णिम इतिहास पर धूल सी जमने लगी है अगर स्थानीय प्रशासन रिक्शों के इतिहास से जमी धूल हटाकर एक स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर करने के लिये प्रयत्न करे तो ये रिक्शे सालों साल यहाँ की शान बड़ाते रहेंगे इसके लिये ऐसे टैक्सी चालकों पर प्रतिबंध लगाना होगा जो रिक्शे की लाईन से सवारियां बैठाकर ले जाते है जो कहीं न कहीं रिक्शा चालकों के हक पर डॉका है इस ओर ध्यान दिये जाने की जरूरत अब महसूस की जाने लगी है।।।