अनादिकाल से जुड़ा शिव और गंगा का रिश्ता- कांवड़ है साक्षात शिव स्वरुप

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रिपोर्ट- राजू पाण्डे

नैनीताल:- शिव और गंगा एक दूसरे के पूरक है,शिव के बिना और गंगा के बिना शिव की कल्पना नही की जा सकती दोनो का अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा है और ये रिश्ता अनादिकाल से है,इसलिये गंगा जल शिव को बेहद प्रिय है।

गंगा शिव की जटाओं से निकली उसका मूल श्रोत विष्णु जी के पैर है,भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर विष्णु ने गंगा से जब पृथ्वी पर जाने के लिये कहा तो वह स्वर्ग से पृथ्वी की ओर चली वहा गंगा जी के वेग को धारण करने के लिये शिव ने अपनी जटायें खोल दी और गंगा जी को अपने सिर पर धारण किया।

तब से गंगाजल से शिव पूजन की परम्परा चली आ रही है कांवड़ यात्रा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ऐसा माना जाता है कि कांवड़ साक्षात शिव स्वरुप है कांवड़ का अर्थ है परात्पर(सर्वोपरि)शिव के साथ विहार।
कांवड़ शिव की आराधना का ही एक स्वरुप है और प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि पर श्रद्धालु कांवड़ यात्रा करते है और मीलों का सफर तय कर गंगाद्वार यानि हरिद्वार से गंगाजल लाकर शिव आराधना करते हैं और जो इस यात्रा के जरिये शिव आराधना कर लेता है वह धन्य हो जाता है।
कांवड़ का अर्थ ही सर्वोपरि शिव के साथ विहार अर्थात ब्रह्म ज्ञानी परात्पर शिव और जो उनमें रमन करे वह कांवरिया।
हालांकि त्रेता युग से ही कांवड़ की परम्परा चली आ रही है पहले कांवड़ यात्रा गंगोत्री से शुरु होकर रामेश्वरम तक जाती थी तब पैदल यात्रा में महीनों लग जाते थे।

रामेश्वरम की स्थापना भगवान राम ने की और गंगोत्री से गंगाजल लाकर रामेश्वरम मे पहली बार परशुराम ने शिव पूजन किया और परशुराम बने पहले कावड़िये।
इन दिनों भी कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है 21 फरवरी को महाशिवरात्रि है और शिव पूजन को गंगाजल लेने के लिये देशभर से कावड़िये हरिद्वार पहुंच रहे है।।।।