रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- उत्तराखंड अपनी हस्तकलाओं के लिये विशेष पहचान रखता है एक दौर था जब यहाँ की हस्तकलायें दैनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा थी इन्ही समृद्ध परंपरागत हस्तकलाओं में दस्तकारी उद्योग भी शामिल है जिसमें दस्तकार लकड़ी को तराशकर बर्तन बनाते है लेकिन पिछले कई सालों से उत्तराखंड में लकड़ी के बर्तनों का उपयोग लगभग बंद हो गया है आधुनिकता की चकाचौंध में दस्तकारी उद्योग गुम सा हो गया और आज की पीढ़ी तो इन बर्तनों का नाम तक नही जानती होगी।
इस समृद्ध परम्परा को सहेजने के लिये इसके अस्तित्व को जीवित रखने के लिये चुनिंदा दस्तकार आज भी घरों से दूर इस कला को जीवित रखने की मुहिम में जुटे है।
पीढ़ियों से इस विरासत को संभाले दस्तकार इन दिनों रामनगर के पवलगढ़ रेंज में पड़ने वाले बौर नदी के किनारे अपना डेरा जमाकर पनचक्की की मदद से लकड़ी के बर्तन तैयार कर रहे है।
ये दस्तकार फरवरी से अप्रैल माह तक नदी के किनारे खराद लगाकर बर्तन तैयार करते है खराद पर अपने अनुभवी हाथों से लकड़ी के टुकड़ों को संवारकर सुंदर बर्तन का रूप देते है।
मूलरूप से बागेश्वर जिले के तहत आने वाले तल्ला दानपुर निवासी दस्तकार कुंदन राम बताते है इनकी पीढियां करीब 1952 के दशक से जब इस परम्परा की शुरुआत हुई थी तब से एक काम को करते थे और अपनी आजीविका भी चलाते थे और इन्हें भी ये कला विरासत में मिली है जिसको आज की चकाचौध में भी ये संरक्षित करने का काम कर रहे है जिससें कि ये गौरवशाली परम्परा जीवंत रहे।
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घरों से कोसों दूर घने जंगलों के बीच रहकर ये दस्तकार उत्तराखंड की परम्परा को जीवित रखे हुवे है हालाकि आज जगह-जगह डेयरी खुलने से इनके कारोबार पर असर जरूर पड़ा है लेकिन इनकी उम्मीद दस्तकारी उद्योग को जीवित रखे हुवे है।
ये दस्तकार पानी को रोककर उससे खराद मशीन चलाते है जिसमें सानड़ और गेठी की लकड़ी से पारंपरिक बर्तन तैयार करते है यदि सरकारें दस्तकारी उद्योग को बढ़ावा दे तो न केवल हमारी समृद्ध गौरवशाली परम्परा आगे बढ़ेगी बल्कि उत्तराखंड में स्वरोजगार की दिशा में दस्तकारी उद्योग नये आयाम छूयेगा।।।