आईआईटी रुड़की का शोध- यमुना में सिलिकॉन डिफॉर्मर केमिकल डालना कोई निदान नहीं- प्रो.बृजेश कुमार यादव

आईआईटी रुड़की का शोध- यमुना में सिलिकॉन डिफॉर्मर केमिकल डालना कोई निदान नहीं- प्रो.बृजेश कुमार यादव

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रिपोर्ट- हरिद्वार ब्यूरो हरिद्वार-(उत्तराखंड)- आईआईटी रुड़की के जल विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि दिल्ली में यमुना नदी के जल में कोई केमिकल मिलाकर साफ करना कोई स्थाई समाधान नहीं है बल्कि किसी केमिकल को मिलाकर हम नदी के पानी को और अधिक विषैला तथा घातक बना रहे हैं उससे कई तरह की चर्म संबंधी बीमारियां हो सकती है।
रुड़की आईआईटी के जल विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बृजेश कुमार यादव ने कहा कि यमुना की सहायक नदी हिंडन पर कई विदेशी कंपनियों और सरकारी संस्थानों के साथ रुड़की आईआईटी का जल विज्ञान विभाग भी काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि सीवर और घरों से गंदा पानी तथा उद्योगों का गंदा पानी सीधे यमुना नदी में मिल रहा है जिससे यमुना नदी का पानी अत्यंत प्रदूषित हो गया है और जब यह पानी थोड़ी दूर जाता है और उसमें ऑक्सीजन की मात्रा थोड़ी भी मिल जाती है तो उसमें झाग बन जाते हैं।

उन्होंने कहा कि यह यमुना नदी का पानी अत्यधिक प्रदूषित हो चुका है जो चर्म संबंधी लोगों तथा कैंसर की बीमारी का सबसे बड़ा कारण बन रहा है और अब दिल्ली में यमुना नदी के पानी पर बन रहे झागों को साफ करने के लिए सिलिकॉन डिफार्मर नामक जो केमिकल मिलाया जा रहा है वह यमुना नदी के पानी को और भी अधिक प्रदूषित और खतरनाक बना देगा जिससे चर्म रोग की बीमारी तथा अन्य बीमारियां लोगों को लगने की पूरी संभावना है।
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उन्होंने लोगों से अपील की है कि छठ पूजन के दिन यमुना नदी में स्नान के लिए ना जाएं यदि स्नान करते हैं या नदी में खड़े होते हैं तो वह थोड़ी देर के लिए नदी में खड़े हो और उसके बाद घर जाकर साफ पानी से स्नान करें ताकि वे यमुना के गंदे पानी से होने वाली बीमारियों से बच सकते हैं।
उन्होंने कहा कि जब यमुना नदी के किनारे अत्यधिक जमा होगी तो प्रदूषण नदी में और बढ़ेगा और लोग एक दूसरे संपर्क में आएंगे ऐसे में बीमारी बढ़ने का खतरा और अधिक हो जाता है।

उत्तराखंड