उत्तराखंड में चकबंदी की मांग

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- देश मे चली आ रही करीब 100 साल पुरानी चकबंदी व्यवस्था को उत्तराखंड राज्य में लागू करने की मांग 1985 से लगातार उठ रही है मगर चकबंदी व्यवस्था को लागू करने की दिशा में सरकारों का कोई सकारात्मक रुख नजर नही आता सालों की अनदेखी के बाद एक बार फिर चकबंदी की मांग उठने लगी है।

सालों से इस मांग को प्रमुखता से उठाने वाले उत्तराखंड चकबंदी मोर्चा के प्रांत अध्यक्ष केवलानंद तिवारी”फकीर” का कहना है कि राज्य में इस विषय को लेकर 1985 से आवाज उठ रही है मगर आज तक इस ओर कोई ठोस कदम सरकारों द्वारा नही उठाया गया है वो बताते है कि 1988-89 में यहाँ दो दफ्तर खुले एक अल्मोड़ा व दूसरा पौड़ी गढ़वाल में लेकिन खुलने के 6 साल बाद ही दोनों दफ्तरों को सरकार ने ये कहते हुवे बंद कर दिया कि हम पहाड़ में चकबंदी के लिये अलग एक्ट बनायेंगे उसके बाद 1997-98 में चकबंदी एक्ट बनाने की कवायद शुरू की लेकिन 2000 के बाद हर सरकार ने चकबंदी के लिये अपनी अपनी समितियां बनाई और करोड़ो रूपये खर्च किये मगर नतीजा सिफर ही रहा एक बड़े मुद्दे की लंबी लड़ाई व भारी जनदवाब के चलते 2016 में आखिरकार चकबंदी एक्ट तो पास हुआ मगर आज तक एक्ट पास होने के बावजूद राज्य में इसको लागू नही किया गया इतना ही नही 2014-15 से कई गांवों के लोगों ने चकबंदी कराने के लिये अपनी अपनी जमीनें भी सरकार को दी है

आज तक कोई सुनवाई नही हुई हालांकि 2015 में लोगों को झुनझुना पकड़ाने के लिये एक चकबंदी विभाग भी स्थापित किया गया है जिसमे 707 पदों को भी सृजित किया गया मगर तैनाती आज तक नही हुई इससे साफ हो जाता है कि सरकारें चकबंदी को लेकर कितना संजीदा है?
केवलानंद तिवारी”फकीर” ने कहा कि चकबंदी व्यवस्था को राज्य में लागू करने के लिये एक लंबी लड़ाई लड़ी गई है मगर हर बार ये मुद्दा सियासी भेंट चढ़ा है ऐसे में अब इस ज्वलंत मुद्दे को नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका के जरिये उठाया जायेगा जिसकी पूरी तैयारी हो चुकी है।