राज्य की पारम्परिक ज्ञान व्यवस्था व बौद्धिक संपदा अधिकार’ संरक्षण पर विद्वानों का मंथन

राज्य की पारम्परिक ज्ञान व्यवस्था व बौद्धिक संपदा अधिकार’ संरक्षण पर विद्वानों का मंथन

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- उत्तराखण्ड स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सहयोग से बौद्धिक संपदा अधिकार प्रकोष्ठ कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा ‘उत्तराखण्ड की पारम्परिक ज्ञान व्यवस्था का संरक्षण और बौद्धिक संपदा अधिकार’ विषय पर विद्वानों द्वारा मंथन किया गया। हरमिटेज भवन में आयोजित चिंतन कार्यक्रम का शुभारंभ कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के कुलपति प्रो० एन०के० जोशी द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।
इस दौरान विद्वानों द्वारा कुमाऊँ विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को उत्तराखण्ड की पारम्परिक ज्ञान व्यवस्था से अवगत कराते हुए उसे बौद्धिक संपदा अधिकार के साथ जोड़कर उसके संरक्षण के गुर सिखाए गये।

इस मौके पर कुलपति प्रो० एन०के० जोशी ने कहा कि आज हमारे सामने उत्तराखण्ड की समृद्ध लोक आधारित परम्परा के संरक्षण की सबसे बड़ी चुनौती है जिसे संरक्षित किये बिना उत्तराखण्ड राज्य बनाने का सपना अधूरा रह जायेगा उन्होंने कहा आज हमारा युवा अपनी सांस्कृतिक विरासत को छोड़ पाश्चात्य संस्कृति की ओर जा रहा है जो भविष्य में हमारी सांस्कृतिक विरासत के विलुप्त होने के खतरे के रूप में हमारे सामने है कुलपति ने शोधार्थियों से बौद्धिक संपदा की उपयोगिता से समाज के उत्थान हेतु शोध कार्य करने का आह्वान करते हुए कहा कि आज जरूरत है कि शोधार्थी बौद्धिक संपदा अधिकार बारे जागरूक हों जिससे सभी को इसका लाभ मिले इसके अलावा उन्होंने कहा बौद्धिक संपति के अंतर्गत पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क के बारे में वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलाव को देखते हुए इन अधिकारों के बारे में सजग रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आपने जो भी नवाचार किया है उसका कॉपी राइट, पेटेंट जरुर कराए जो आत्म निर्भर भारत अभियान के लिए सहयोग प्रदान करेगा।
प्रो० अतुल जोशी ने कहा कि बौद्धिक संपदा को दिमागी उपज कहा जाता है इसका उपयोग आविष्कारकर्ता ही कर सकता है। इसके अंतर्गत व्यक्ति अथवा संस्था की सृजित कोई रचना, संगीत साहित्यिक कृति, कला, खोज अथवा डिजाइन होती है, जो उस व्यक्ति अथवा संस्था की बौद्धिक संपदा कहलाती है।
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कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में पहुंचे इतिहासकार पर्यावरणविद और सामाजिक एवं सूचना अधिकार कार्यकर्ता प्रो० अजय रावत ने उत्तराखण्ड की पारम्परिक ज्ञान व्यवस्था पर अपना प्रस्तुतिकरण देते हुवे संरक्षण पर भी जोर दिया।
इस मौके पर प्रो० अमित जोशी,डॉ० प्रदीप जोशी,डॉ० जीवन उपाध्याय,मनोज पांडेय,डॉ० सारिका जोशी, वैशाली बिष्ट व पंकज भट्ट सहित तमाम छात्र-छात्राएं मौजूद रही।

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