हस्तशिल्प का चमकता नक्षत्र- काष्ठकला के परंपरागत हस्तशिल्पी रामलाल ने कुमाऊं की कला को विदेशों तक दिलाई पहचान

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रिपोर्ट- नैनीताल
नैनीताल- हस्तशिल्प एक ऐसी विधा मानो कला को जुंबा मिल गई हो बेजान काष्ठ पर जब रामलाल जी के हाथ चलते है और अपने विशद शिल्पज्ञान से जब वो अपनी कल्पनाओं को गढ़ते है तो वो साकार हो उठती है।


आज हम आपको काष्ठकला के उस महान शिल्पी से मिला रहे है जिसने कुमाऊं की इस परंपरागत कला को विदेशों तक पहचान दिलाई।
हम बात कर रहे है नैनीताल के चारखेत निवासी रामलाल जी की रामलाल जी को काष्ठकला में महारत हासिल है उन्हें यह कला अपने पिता जाथली राम जी से विरासत में मिली पिता की इस अनमोल विरासत को रामलाल जी ने वो ऊंचाईयां दी कि आज उनके नाम व काम का बखान विदेशों तक होता है।

अपने शैशव काल से ही उन्होंने काष्ठकला सीखना प्रारंभ कर दिया 27 वर्षो तक उन्होंने नैनीताल में तुलाराम जी के कारखाने में काम किया तुलाराम जी के देहांत के बाद उन्होंने चारखेत में ही अपना कारखाना खोल लिया।
अनुभव प्राप्त रामलाल जी को काष्ठ की गणेश प्रतिमा से पहचान मिली 1989-90 में उन्हें काष्ठ की गणेश प्रतिमा के लिये प्रादेशिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया,2015 में उन्हें राज्य शिल्प रत्न पुरस्कार से भी नवाजा गया रामलाल जी ने 60 के दशक से भी अधिक समय काष्ठकला को समर्पित कर दिया उनका धेय काष्ठकला को जीवित रखना है इसी के चलते उन्हें दो ताम्रपत्र भी मिल चुके है।
रामलाल जी द्वारा निर्मित प्रतिमाओं की मांग विदेशों तक है देश के हर कोने में काष्ठकला को प्रदर्शित कर चुके रामलाल जी ने हरियाणा में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल जी को स्वनिर्मित हल चलाते हुवे बैल का जोड़ा भी उपहार में दिया।

आज रामलाल जी 86 वर्ष के हो गये है हालाकि अपने ज्ञान की कुंजी से वो अपने पुत्र को विरासत में अपनी कला को हस्तांतरित कर चुके है लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी उनको एक टीस है यदि सरकारें प्रोत्साहन देती सहयोग करती तो रामलाल जी स्कूल खोलकर इस कला का समग्र प्रसार करना चाहते थे लेकिन हमारे यहाँ हुनर अक्सर अनदेखी के चलते सिमट जाता है नही तो रामलाल जी हस्तशिल्प के वो सागर है जिसमें जितनी बार डुबकी लगाओ उतने मोती समेट लो।।।।।।