1944 से पियानो में पिरो रहे है सुर- उत्तराखण्ड के एकमात्र पियानो ट्यूनर

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रिपोर्ट- राजू पाण्डे

नैनीताल-:पियानो का नाम सुनते ही संगीत की स्वर लहरियां कानों में गूंजने लगती है पियानो के सुर हमारे मन मस्तिष्क को एक नई ऊर्जा से भर देते है पियानो के बिना संगीत की कल्पना करना शायद मुश्किल है,पियानो संगीत की धुनों को परिपूर्ण करता है।


आज हम आपको नैनीताल की एक ऐसी सख्सियत से रूबरू करा रहे है जो नैनीताल के ही नही बल्कि पूरे उत्तराखण्ड के एकमात्र पियानो ट्यूनर है। पियानो के सुर साधने का काम करते है दलबीर सिंह।
दलबीर को ये हुनर विरासत में मिला है जिसे उन्होंने अपनी मेहनत व सुर साधना से एक नई पहचान दी |
दलबीर सिंह और उनका परिवार 1944 से ये काम कर रहा है सबसे पहले 1944 में दलबीर के दादा जी स्वर्गीय महेंद्र सिंह विरदी लाहौर से दिल्ली आये फिर परिवार के साथ उन्होंने लखनऊ में रहने का मन बनाया मगर उनके हुनर के कायल अंग्रेज उन्हें नैनीताल ले आये और किराये पर दुकान लेकर पियानो ट्यूनर का काम शुरू कर दिया सबसे पहले उन्होंने शेरवुड कॉलेज के पियानो को रिपेयर कर अपना काम शुरू कर दिया।

उस दौर में अंग्रेज पियानो के बड़े शौकीन हुआ करते थे और यहा के सभी बड़े नामचीन स्कूलो में पियानो बजाने का चलन था और महेंद्र सिंह को पियानो ठीक करने में महारथ हासिल थी इसी वजह से अंग्रेज उन्हें बहुत पसंद करते थे।
अपने दादा महेंद्र सिंह के इसी काम और उनके नाम को आगे बड़ा रहे है उनके पोते दलबीर सिंह।
दलबीर सिंह आज पूरे उत्तराखण्ड के एकमात्र पियानो ट्यूनर है और इन्हें एक काम मे इतनी महारथ हासिल है कि ये यहा से मसूरी, देहरादून,इलाहाबाद,लखनऊ,दिल्ली व चंडीगढ़ तक जाते है और वहा बड़े बड़े पियानो को सुर देने का काम करते है।
अपने दादा जी की विरासत को आगे बड़ाने में उन्ही कड़ी चुनौतियों से भी गुजरना पड़ता है दलबीर बताते है कि एक पियानो ट्यून करने में 6 माह से अधिक का समय लग जाता है और इसमे सबसे बड़ी समस्या होती है लकड़ी के पार्ट्स मिलना जिसके लिये वो अपने हाथों से लकड़ी के पुर्जे तैयार करते है और फिर सुरों को सेट करते है।
दलबीर बताते है कि यूरोपियन वाद्य होने के कारण पियानो के पुर्जे मिलना कठिन होता है लेकिन उनके दादा जी का आशिर्वाद व उनकी मेहनत व साधना के चलते वे खराब हालत यहा तक कि बंद पड़े पियानो को भी सुर देने में कामयाब होते है।
आपको बताते है कि पूरे देश मे पियानो ट्यून करने वाले बहुत कम लोग है इसलिये देशभर से पियानो ट्यून करने के लिये लोग उन्हें बुलाते है।

आज के इस युग मे जहाँ बच्चे अपने माता पिता की छोटी छोटी अपेक्षाओं पर खरे नही उतरते वही दलबीर सिंह अपने दादा जी के पदचिन्हों पर चलकर उनके नाम और उनके काम को पहचान दे रहे है और उनकी विरासत को आगे बड़ा रहे है जो अपने आप मे एक मिशाल है।।।।।