Exclusive- केदारनाथ की महिमा

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रिपोर्ट- हरेंद्र नेगी वरिष्ठ संवाददाता
रुद्रप्रयाग-(उत्तराखंड)- हिमालय सदियों से ऋषि.मुनियों तथा देवताओं की तपस्थली रहा है। महान विभूतियों ने यहां तपस्या करके आध्यात्मिक शक्ति अर्जित की और विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया। उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में चारधाम के नाम से बद्रीनाथए केदारनाथए गंगोत्री और यमुनोत्री प्रसिद्ध है। ये तीर्थ देश के सिर.मुकुट में चमकते हुए बहुमूल्य रत्न हैं। इनमें से बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थाें के दर्शन का विशेष महत्व है। करोड़ों हिंदुओं के आस्था का प्रतीक ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ का मंदिर जिले में स्थित है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर मई से अक्टूबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णाेद्धार करवाया।

केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों प्रधान तीर्थ हैं। दोनों के दर्शन का बड़ा ही महात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता हैए उसकी यात्रा निश्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर.नारायण मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है। इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12.13वीं शताब्दी का है। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया। जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर के बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा हैए जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकारों के मुताबिक शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। 1882 के इतिहास के अनुसार अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन थाए जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियां हैं। पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टाॅवर है। इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। यह मंदिर एक छह फीट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर पदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण किसने करायाए इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिला है। लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी।

मंदिर की पूजा कुछ इस तरह की जाती है कि प्रातः काल में शिव.पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी.लेपन किया जाता है। उसके बाद धूप.दीप जलाकर आरती.उतारी जाती है। इस दौरान यात्री गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैंए लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं।
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रंृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
केदारनाथ की पूजा के बारे में कुछ जानकारियां
1.केदारनाथ जी का मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रातः सात बजे खुलता है।
2.दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है।
3.पुनः शाम पांच बजे भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर खोला जाता है।
4.पांच मुखी वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक नियमित आरती होती है।
5.रात्रि साढ़े आठ बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बंद कर दिया जाता है।
6.शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढक जाती है। यद्यपि केदारनाथ मंदिर के खोलने और बंद करने का मुहुर्त निकाला जाता हैए लेकिन यह सामान्यतः नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व ;वृश्चिक संक्रांति से दो दिन पूर्वद्ध बंद होता जाता है और छह माह बाद अर्थात बैसाखी के बाद कपाट खुलते हैं।
7.ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ऊखीमठ स्थित पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में लाया जाता है। इसी प्रतिमा की पूजा यहां भी राॅवल करते हैं।
8.केदारनाथ में भक्त शुल्क जमा कराकर रसीद प्राप्त करते हैं और उसके अनुसार ही वह मंदिर की पूजा.आरती कराते हैं या फिर भोग.प्रसाद ग्रहण करते हैं।
9.भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रातकालीन पूजाए महाभिषेक पूजाए अभिशेकए लघु रुद्राभिषेकए षौडशोपचार पूजनए अष्टोपचार पूजनए सम्पूर्ण आरतीए पांडव पूजाए गणेश पूजाए श्री भैरव पूजाए पार्वती जी की पूजाए शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख है। मंदिर समिति द्वारा केदारनाथ मंदिर में पूजा कराने के लिए भक्तों से जो दक्षिणा ली जाती हैए उसमें समिति समय.समय पर परिवर्तन भी करती है।
पांड़वों को मिली थी गोत्र दोष से मुक्ति

रुद्रप्रयाग। ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ धाम हिमालय की तलहटी में 11ए 750 फीट की ऊंचाई पर है। यह रुद्रप्रयाग जिले का मुख्य शिव धाम है। नागर शैली में बना यह मंदिर मंदाकिनी के बायें तट पर स्थित है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार नर.नारायण की तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान स्वरूप आशुतोष महादेव ने इस स्थान पर मानव कल्याण के लिए सदैव निवास करने का वचन दिया था। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों के गोत्र दोष के निवारण के लिए महर्षि नारद ने पांडवों को इस स्थान पर भगवान शिव के दर्शन की प्रेरणा दी थी। पांडव गोत्र दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां आये। भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। उन्होंने महिष ;भैंसाद्ध का रूप धारण किया और भैंसो के बीच में विचरण करने लगे। भीम ने भगवान शिव को पहचान लिया। भगवान शिव जमीन में धंसने लगे। भीम ने महिष रूपी शिव का पृष्ठ भाग पकड़ लिया। पांडवों का भक्तिभाव देखकर भगवान ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए। इस पर पांडव गोत्र दोष से मुक्त हुए। इसी स्थान से महिष रूपी भगवान शिव का मुख पशुपतिनाथ नेपाल मेंए नाभि मद्महेश्वरए बाहु तुंगनाथ में एवं जटा कल्पेश्वर ;चमोलीद्ध में प्रकट हुए। केदारनाथ में महिष रूपी भगवान शिव के पृष्ठ भाग की शिला के रूप में पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह के बाहर एक मंडप है। इसमें द्रौपदी सहित पांचों पांडवों की मूर्तियां ह। गभगृह में पत्थर के चार खंभे हैं। ये मंदिर के बाहरी भाग से प्राचीन लगते हैं। मुख्य रूप से मंदिर में भैंसे की पीठ के समान शिला है। इसी को केदारनाथ भगवान का लिंग माना जाता है। इसके अलावा यहां शंकराचार्य समाधि हैए जो मंदिर के पीछे अवस्थित है। अखंड ज्योति के दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
1962 में हुआ था भगवान केदारनाथ की पंचमुखी डोली का निर्माण
रुद्रप्रयाग। वर्ष 1942 में बद्रीनाथ मन्दिर समिति का गठन होते ही सचिव पद की कमान शोणितपुर निवासी पुरुषोतम बगवाडी को सौंपी गयी थी। 1956 में भगवान केदारनाथ व शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मन्दिर को भी मन्दिर समिति में शामिल किये जाने पर मन्दिर समिति का नाम बद्री.केदार मन्दिर समिति रखा गया। भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली डोली का निर्माण लगभग 1962 में कलकत्ता के एक श्रद्धालु व मन्दिर समिति के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। उससे पूर्व भगवान केदारनाथ के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ से केदारनाथ धाम के लिए देव कंडी के साथ साथ नागरुपी लोहे की चाबी को केदारनाथ ले जाया जाता था। नागरुपी लोहे की चाबी को ही भगवान केदारनाथ का स्वरुप माना जाता था। भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली के निर्माण से पूर्व श्रद्धालुओं द्वारा नागरुपी लोहे की चाबी की ही पूजा.अर्चना कर मनोतियां मांगी जाती थी तथा नागरुपी लोहे की चाबी से ही भगवान केदारनाथ के कपाट खोले व बन्द किये जाते थे। 70 के दशक तक अधिकांश घरों में भी नागरुपी लोहे की चाबी से ही लकडियों के दरवाजे खोले व बन्द किये जाते थे। कई घरो में आज भी नागरुपी लोहे की चाबी पायी जाती है। अधिकांश ग्रामीणों द्वारा नागरुपी लोहे की चाबी को अपने पूजा स्थलों में रखा गया है।
बुधवार को खुलेंगे बाबा केदारनाथ धाम के कपाट
रुद्रप्रयाग। विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट बुधवार को विधि विधान और पूजा अर्चना के बाद खोल दिए जाएंगे। हालांकि पहले कपाट खुलने के मौके पर यहां तीर्थयात्री और स्थानीय लोगों की कमी साफ महसूस होगी। कोराना संकट के चलते यह पहला मौका होगा जब कपाट खुलने पर बाबा के दरबार में भक्तों का टोटा होगा। इधर कपाट खुलने की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। बुधवार सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर बाबा केदार के कपाट खोल दिए जाएंगे।
मुख्य पुजारी शिव शंकर लिंग कपाट खुलने की परम्परा का निर्वहन करेंगेए जबकि उनके साथ देवस्थानम बोर्ड के प्रतिनिधि के तौर पर बीडी सिंह मौजूद रहेंगे। इस बार मंदिर को फूलों और बिजली की लड़ियों से सजाया गया है।
इस मौके पर चारधाम देवस्थानम् बोर्ड द्वारा भेजे गए अधिकारी कर्मचारियों के साथ प्रशासन और पुलिस की टीम भी मौजूद रहेगी। पूरी सागदी के साथ कपाट खुलने की परम्परा निभाई जाएगी। सोशल डिस्टेंसिंग रहे और भीड़ न हो इसके लिए प्रशासन ने किसी को भी केदारनाथ जाने की अनुमति नहीं दी है इसलिए कपाट खुलने के मौके पर काफी कम संख्या में लोग मौजूद रहेंगे।
गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते केदारनाथ के कपाट खुलने की परम्परा का सादगी से निर्वहन किया जाएगाए किसी भी दर्शनार्थी को केदारनाथ जाने की अनुमति नहीं दी गई है।